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ननकू के क़िस्से

माँ सोफ़े पर बैठकर कोई पुरानी किताब पढ़ रहीं थीं, रसगुल्ला उनके पैरों के पास बैठा था। वो बार-बार माँ की तरफ़ उम्मीद से देखता, माँ उसे एक नज़र मुस्कुरा कर देखतीं और उसे थोड़ा सा सहला देतीं…
रसगुल्ला माँ का प्यार पाकर तसल्ली पाता लेकिन वो इस बात को लेकर हैरान था कि चीकू कैसे इतना आराम से अपने में लगा हुआ है। वो दौड़ता हुआ चीकू के पास पहुँच गया, किचन के दरवाज़े के पास चीकू आराम से बैठा था। रसगुल्ला ने भौंकते हुए उससे बात की, उसने ये पूछने की कोशिश की कि क्या वो ननकू के बारे में नहीं सोच रहा।

चीकू ने रसगुल्ला को समझाने की भी कोशिश न की और उसकी बात को जैसे अनसुना कर दिया। रसगुल्ला चीकू को दो बार भौंका और माँ के पास उसकी शिकायत करने पहुँच गया।

माँ ने किताब को किनारे रख रसगुल्ला को गोद में उठा लिया… “अच्छा, तो चीकू को ननकू की ज़रा भी चिंता नहीं हो रही”

रसगुल्ला ने “हाँ” में सर हिलाया।

तभी रसगुल्ला ने माँ पर भी थोड़ी सी नाराज़गी दिखाते हुए सर दूसरी तरफ़ कर लिया…

“अब मुझसे क्या नाराज़गी…ओहो मैं भी ननकू को मिस नहीं कर रही न”

रसगुल्ला ने वापिस सर माँ की तरफ़ किया और माँ की गोद में छुप सा गया…

“असल में तुम तो उसको पहली बार स्कूल जाते देख रहे हो न, मैं तो कितनी बार देख चुकी हूँ”
रसगुल्ला ध्यान से माँ को सुनने लगा

“पहली बार ज़्यादा एहसास होता है, फिर कम होता है”

रसगुल्ला भौंक कर बताने लगा कि वो तो हमेशा ऐसे ही ननकू को मिस करेगा..

“अच्छा भई, करना तुम मिस, कौन रोका है”

इतने में दादी अपने कमरे से बाहर आयीं..

“ए बच्चों, ननकू पढ़ने गया तो तुम लोग क्या कर रहे हो”

रसगुल्ला के कान खड़े हो गए, चीकू भी दादी को ध्यान से देखने लगा..

“तुम लोग चलो मेरे साथ, मैं तुम दोनों को पढ़ाती हूँ…”

रसगुल्ला उछलकर माँ की गोद से दादी की ओर भागता हुआ पहुँचा, चीकू चुपके से किचन के अंदर जाने लगा…

“तू भी आ..”

चीकू लेकिन वहीं बैठा रहा…माँ ने चीकू को ज़रा डाँटा,”अरे जाओ बेटा, दादी बुला रही हैं..”,चीकू धीरे धीरे दादी के पास जाने लगा और पहुँच गया..

“अरे बच्चों, तुम्हें मैं कहानी सुनाने वाली हूँ, ऐसी कहानी जो ननकू को भी नहीं सुनाई…जब ननकू आएगा तो तुम दोनों उसे सुनाना” दादी ने जैसे ही ये कहा रसगुल्ला और चीकू को लग गया कि अब तो बड़ा मज़ा आने वाला है…दादी ने कहानी सुनानी शुरू की तो माँ भी उनके पास बैठ गईं और ध्यान से कहानी सुनने लगीं..रसगुल्ला अब भी बीच-बीच में बाहर देख लेता था।

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